सूरज चाचा रोज सुबह तुम
हमें जगाने आते हो ;
किरण बुआ के उजियारे से
सारा जग चमकाते हो .
काले काले अंधियारे से
खो जाती हैं सभी दिशाएं ;
मेरे जैसे नन्हे बच्चे
माँ से लिपट-चिपट सो जाये
तुम आकर के अंधकार का
सारा दंभ मिटाते हो .
सूरज चाचा रोज सुबह
तुम हमें जगाने आते हो !
शीतकाल में धूप सेंककर
कितना अच्छा लगता है !
खील-बताशे ;गन्ना गुड भी
साथ साथ में चलता है ,
तुम ही हो जो क्रूर शीत से
आकर हमें बचाते हो .
सूरज चाचा रोज सुबह
तुम हमें जगाने आते हो .
शिखा कौशिक
[sabhi photo google se sabhar ]
5 टिप्पणियां:
कित्ती प्यारी कविता..पढ़कर अच्छा लगा. 'पाखी की दुनिया' में आप भी जलेबी खाने आइयेगा.
बहुत प्यारी कविता ....
बहुत सुन्दर रचना!
आंटी बहुत ही प्यारी लगी ये कविता... थैंक्यू!
शिखा जी मन भावन ....
सुबह सवेरे अब हम भी
उठ चाचा से मिल आयेंगे
किरण बुआ से विटामिन डी ले
अपनी अस्थि खूब मजबूत बनायेंगे ....
बहुत सुन्दर मूल भाव ..परिस्थितिजन्य दृश्य ...बधाई हो ...
भ्रमर ५
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया
शीतकाल में धूप सेंककर
कितना अच्छा लगता है !
खील-बताशे ;गन्ना गुड भी
साथ साथ में चलता है ,
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