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रविवार, 27 जनवरी 2013

फूलों जैसे कोमल मन के तितली जैसे चंचल हैं






फूलों जैसे कोमल मन के
तितली जैसे चंचल हैं ,
हम बच्चे हैं प्यारे-प्यारे
सदा ह्रदय से निर्मल हैं .

होंठों पर मुस्कान सजाये
उछल-कूद हम करते हैं ,
अपनी मीठी बोली से
सबका मन हर लेते हैं .

पापा के हम राज दुलारे
माँ की आँख के तारे हैं ,
हमको ही तो सच करने
अब उनके सपने सारे हैं

शिखा कौशिक

6 टिप्‍पणियां:

Madan Mohan Saxena ने कहा…

Very nice. Childhood is golden period of life.

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

amit kumar srivastava ने कहा…

बहुत प्यारी पंक्तियाँ

देवदत्त प्रसून ने कहा…

तिरंगा वास्तव में भारत का मस्तक है जो सदैव ऊंचा रहना चाहिये|एक बच्चे के माध्यम से बहुत अच्छी बात कही गयी है |

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 ने कहा…

बेहतरीन ....

धीरेन्द्र अस्थाना ने कहा…

bachpan aur wo titaliyan.