नहीं टालते बात बड़ों की
बारिश के दिन शुरू हुए थे
टर्र टर्र टर्रराता था ;
टिंकू मेढक उछल-उछल कर
अपने पर इतराता था .
उसकी मम्मी उसे रोकती
उनपर वो चिल्लाता था ;
मम्मी की इस रोक-टोक पर
उसको गुस्सा आता था ,
मम्मी कहती गीली मिटटी
कहीं फिसल न तुम जाना !
टिंकू कहता बड़ा अकड़कर
क्या मुझको बुद्धू माना ?
लेकिन एक दिन खेल-खेल में
टिंकू गिरा फिसलकर था ;
चोट लगी और दर्द हुआ
तब रोया खूब फफक कर था ,
मम्मी ने फिर गोद बिठाकर
प्यार से सिर को सहलाया ;
नहीं टालते बात बड़ो की
बड़े लाड़ से समझाया ,
टिंकू ने फिर कान पकड़कर
मम्मी से ये बात कही
आज समझ में आया मुझको
गलत था मैं और आप सही .
शिखा कौशिक
http://shikhakaushik.blogspot.com
7 टिप्पणियां:
टिंकू ने फिर कान पकड़कर
मम्मी से ये बात कही
आज समझ में आया मुझको
गलत था मैं और आप सही .
yakeen nahi hota ki itni sundarta se maindhak ki baton ko koi abhiyakt kar sakta hai.badhai shikha ji.
सही बात बताती कविता.... बहुत अच्छी बात हम बच्चों को समझाई आपने ..शिखा दी
बहुत प्यारा बाल गीत।
मम्मी ने फिर गोद बिठाकर
प्यार से सिर को सहलाया ;
नहीं टालते बात बड़ो की
बड़े लाड़ से समझाया ,
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बहुत उपयोगी सीख!
वाह कभी बड़ों की बात नहीं टालने चाहिए
बहुत खूब
शिखा जी वाह वाह मन खुश हो गया सुन्दर रचना सुन्दर सीख ऐसे टिंकू रोज ही निकलें -बारिश में झम झम भीगें -रोज सिखाएं रोज पढ़ायें -
बधाई हो सुन्दर रचना पर
आभार आप का
शुक्ल भ्रमर ५
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shukl bhramar5
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