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शनिवार, 2 जुलाई 2011

नहीं टालते बात बड़ों की

नहीं टालते बात बड़ों की



बारिश के दिन शुरू हुए थे

टर्र टर्र टर्रराता था ;

टिंकू मेढक उछल-उछल कर

अपने पर इतराता था .

उसकी मम्मी उसे रोकती

उनपर वो चिल्लाता था ;

मम्मी की इस रोक-टोक पर

उसको गुस्सा आता था ,

मम्मी कहती गीली मिटटी

कहीं फिसल न तुम जाना !

टिंकू कहता बड़ा अकड़कर

क्या मुझको बुद्धू माना ?

लेकिन एक दिन खेल-खेल में

टिंकू गिरा फिसलकर था ;

चोट लगी और दर्द हुआ

तब रोया खूब फफक कर था ,

मम्मी ने फिर गोद बिठाकर

प्यार से सिर को सहलाया ;

नहीं टालते बात बड़ो की

बड़े लाड़ से समझाया ,

टिंकू ने फिर कान पकड़कर

मम्मी से ये बात कही

आज समझ में आया मुझको

गलत था मैं और आप सही .

शिखा कौशिक

http://shikhakaushik.blogspot.com


7 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

टिंकू ने फिर कान पकड़कर
मम्मी से ये बात कही
आज समझ में आया मुझको
गलत था मैं और आप सही .
yakeen nahi hota ki itni sundarta se maindhak ki baton ko koi abhiyakt kar sakta hai.badhai shikha ji.

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

सही बात बताती कविता.... बहुत अच्छी बात हम बच्चों को समझाई आपने ..शिखा दी

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत प्यारा बाल गीत।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

मम्मी ने फिर गोद बिठाकर
प्यार से सिर को सहलाया ;
नहीं टालते बात बड़ो की
बड़े लाड़ से समझाया ,
--
बहुत उपयोगी सीख!

Unknown ने कहा…

वाह कभी बड़ों की बात नहीं टालने चाहिए

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

बहुत खूब

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

शिखा जी वाह वाह मन खुश हो गया सुन्दर रचना सुन्दर सीख ऐसे टिंकू रोज ही निकलें -बारिश में झम झम भीगें -रोज सिखाएं रोज पढ़ायें -
बधाई हो सुन्दर रचना पर
आभार आप का
शुक्ल भ्रमर ५
समय मिले तो हमारे अन्य ब्लॉग पर भी पधारें कभी -लिंक हैं,

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shukl bhramar5