प्यारे बच्चों,
मैंने कई दिन तक इंतजार किया लेकिन चैतन्य को छोड़कर किसी ने भी मेरे प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया और चैतन्य कि समझदारी तो देखिये कि उसने मेरे ब्लॉग कि तारीफ कि और चुप्पी साध ली.मैं आप सभी से एक बार और आशा करती हूँ कि आप मेरे प्रश्नों के उत्तर देंगे.
चलिए आज आपसे और आगे बात करते हैं.ये तो आप भी जानते हैं और मैं भी कि आप बहुत समझदार होते हैं.बड़ों द्वारा आपको छोटा समझकर आपकी यदि हंसी उड़ाई जाती है तो आपको बिलकुल अच्छा नहीं लगता.
मैं आपको अपने बचपन की ऐसी ही एक बात बताती हूँ.तब हमारे यहाँ टी.vi. नहीं था और उस वक़्त इतवार की दूरदर्शन की फिल्म का बहुत क्रेज़ बच्चों में रहता था इसलिए हम पड़ोस में इतवार की फिल्म देखने जाते थे.तो परेशानी यह थी की पड़ोस की कुछ हमसे बड़ी लड़कियां हमें फिल्म देखते हुए देखकर हंसती थी तब ये हमें बहुत बुरा लगता था पर आज हम भी यही करते हैं और पुरानी बातों को सोचकर खूब हँसते हैं पर हाँ क्योंकि हमने खुद ये झेला है इसलिए जल्दी ही चुप हो जाते हैं क्योंकि हमें पता है की बच्चे इस तरह की बातों को गंभीरता से लेते हैं.क्यों बच्चों मैं सही कह रही हूँ न?
बच्चे भगवान का स्वरुप होते हैं.उनके संसार में दुःख ,निराशा का कोई स्थान नहीं होता और न ही होना चाहिए.बच्चों के साथ रहकर सभी अपने दुःख भूल जाते हैं.भगवान के इन्ही नन्हे फरिश्तों के लिए ये ब्लॉग........
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शनिवार, 30 अक्टूबर 2010
मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010
bachchon tum ho phool salone
आज मैं अपनी छोटी बहन शिखा की प्रेरणा से बनाये गए इस ब्लॉग पर लिख रही हूँ.मेरी बहन और मैं दोनों ही बच्चो से बहुत प्यार करते हैं लेकिन जैसे की मेरी बहन बच्चों से बहुत प्यार करने के कारण उनकी बहुत सी गलतियों को माफ़ कर देती है मैं नहीं कर पाती.आज के बच्चे बहुत होशियार हैं लेकिन अपने बड़ों की कुछ नासमझियों के कारण असभ्य भी होते जा रहे हैं और यही असभयता है जो मैं झेल नहीं पाती.मेरे पापा मम्मी ने हमेशा मुझे बड़ों का सम्मान करना सिखाया है.उन्होंने ये कभी नहीं चाह की हम बच्चे बैठ कर बड़ों की बातों में शामिल hon क्योंकि यह एक तथ्य hai की बच्चे बड़ों के साथ बैठ कर उनकी ही बातें सीखेंगे इसलिए बच्चों की मासूमियत को बचाने के लिए बड़ों का योगदान ज़रूरी है.इसलिए मैं पहले बड़ों से ही सहायता मांगती हूँ की वे बच्चों को बच्चा ही रहने दे.
अब बच्चों आप से मैं जो पूछ रही हूँ उसका बच्चो खुद जवाब देना मम्मी या पापा से मत पूछना.अब बताओ...
१-क्या आपको बड़ों में बैठना उनसे बाते करना अच्छा. लगता है यदि हाँ तो क्यों?
२-आप बड़ों से क्या उम्मीद करते हो?
३-आप अपने मित्र स्वयं बनाते हो या पापा मम्मी से पूछकर बनाते हो?
४-क्या आप अपने मित्र की सब बाते घर में बताते हो?
५-क्या आप अपनी मित्रता की लड़ाई में मम्मी पापा की मदद लेते हो?यदि हाँ तो क्यों?यदि नहीं तो क्यों?
तुम्हारे जवाब के इंतजार में....
अब बच्चों आप से मैं जो पूछ रही हूँ उसका बच्चो खुद जवाब देना मम्मी या पापा से मत पूछना.अब बताओ...
१-क्या आपको बड़ों में बैठना उनसे बाते करना अच्छा. लगता है यदि हाँ तो क्यों?
२-आप बड़ों से क्या उम्मीद करते हो?
३-आप अपने मित्र स्वयं बनाते हो या पापा मम्मी से पूछकर बनाते हो?
४-क्या आप अपने मित्र की सब बाते घर में बताते हो?
५-क्या आप अपनी मित्रता की लड़ाई में मम्मी पापा की मदद लेते हो?यदि हाँ तो क्यों?यदि नहीं तो क्यों?
तुम्हारे जवाब के इंतजार में....
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