कितनी मुसीबत की थी घडी !
छोटी सी गिल्ली के सिर पर पड़ी ,
पूसी नाम की बिल्ली
गिल्ली के पीछे थी पड़ गयी .
गिल्ली थी थर थर थर कांप रही ,
फर फर फर भाग रही ,
सामने जब घर आ गया ,
जल्दी से जाकर घर में घुसी ,
कितनी मुसीबत की थी घडी !
पूसी थी लेकिन जिद पर अड़ी ,
गिल्ली के घर के बाहर खडी ,
गिल्ली ने सोचा अब क्या करूँ ?
जिन्दा रहूँ या डरकर मरूं ?
कितनी मुसीबत की थी घडी !
डॉगी चिंटू वहां आ गया ,
गिल्ली का था वो दोस्त बड़ा ,
भौंका वो पूसी को देख वहां ,
पूसी हो गयी वहां से हवा ,
मुसीबत की टल गयी थी घडी !
गिल्ली ने खुश हो ताली बजाई ,
डॉगी को लाकर टॉफी खिलाई ,
बोली -मेरी जान बचाई !
दोस्ती है तुमने निभाई !
ये ही बात है सबसे बड़ी !
मुसीबत की टल गयी थी घडी !
शिखा कौशिक 'नूतन '
4 टिप्पणियां:
.शानदार अभिव्यक्ति बधाई
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
सुन्दर बाल कविता ..और अच्छी प्रस्तुति शालिनी जी .....एक दूजे के काम आते रहें तो आनंद और आये ऐसे ही
भ्रमर 5
सुन्दर बाल कविता ..और अच्छी प्रस्तुति शिखा जी .....एक दूजे के काम आते रहें तो आनंद और आये ऐसे ही
भ्रमर 5
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