[गूगल से साभार ]
एक गिलहरी ..नाम था लहरी
चली घूमने मेले में .
संग सहेली ...करें ठिठोली
धूम मचाती मस्ती में .
माँ ने रोका .....उसको टोका
कहाँ चली तुम सर्दी में ?
सुनकर लहरी ...थोडा ठहरी
फिर वह बोली ..जल्दी में
टोपी-मफलर और स्वेटर
कौन पड़े झमेले में ?
ये कह माँ से ...निकली घर से
पहुंची फिर वह मेले में .
मेला घूमा ...झूला-झूला
लिए खिलौने थैले में .
फिर घर पहुंची ...जोर से छीकी
घुस गयी जाकर बिस्तर में .
माँ ने सिर पर हाथ फिराया
काढ़ा उसको गर्म पिलाया
खो गयी फिर वह सपनों में .
सारी सर्दी दूर थी भागी
लहरी ने फिर माफ़ी मांगी
फिर वह उछली ..घर भर में .
एक गिलहरी ...नाम था लहरी .
शिखा कौशिक